Vijay Goel

देश की क़ीमत पर सियासत ?

विजय गोयल
(लेखक बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं)
 
जेएनयू में देश के गुनहगार आतंकी अफ़ज़ल गुरु की बरसी के मौक़े पर जिस तरह देश विरोधी नारेबाज़ी हुई, उसने देश के नौजवानों के दिलों में नए सिरे से देशभक्ति की भावना का संचार किया है। मुझे खुशी है कि देश के कोने-कोने में हमारे जवान इस देश विरोधी कृत्य के विरोध में खड़े हो गए हैं। यह बात बहुत उम्मीद जगाती है। आमतौर पर मान लिया जाता है कि आज का युवा राह भटक गया है, लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा नहीं है। जब भी कोई देश विरोधी बात उसका ज़मीर कछोरती है, वह सीना तान कर खड़ा हो जाता है। मेरी बहुत से युवाओं से इस बारे में बातचीत हुई, तो मुझे यह जानकर और भी ख़ुशी हुई कि उन्होंने संकल्प लिया है कि आज़ादी के वीर सिपाही भगत सिंह की तरह वे भी हर संभव तरीक़े से ऐसे देश विरोधी लोगों को खदेड़ने का काम करेंगे। हालांकि युवाओं में इस बात को लेकर थोड़ा मलाल ज़रूर है कि सरकार ने पहले ही दिन इस मामले में सख़्ती नहीं दिखाई।
 
जेएनयू यानी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नाम पर बना ऐसा विश्वविद्यालय है जिसमें देश-विदेश के बहुत से छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। लेकिन नौ फरवरी को यूनिवर्सिटी कैंपस में जो कुछ हुआ, उसने कैंपस के नाम पर धब्बा लगा दिया है। देश के युवाओं के अलावा वे लोग भी इस देश विरोधी नापाक हरक़त का विरोध कर रहे हैं, जो किसी सिलसिले में विदेश में रहने को मजबूर हैं। 
 
हमारा देश वसुधैव कुटुंबकम और सर्व धर्म समभाव वाला देश है। जिस देश में हम पूरी आज़ादी से रह रहे हैं, जिस देश में कोई भेदभाव नहीं होता, उसके ख़िलाफ़ ऐसा प्रदर्शन कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है?
 
हमारा क़ानून सब लोगों को विरोध दर्ज कराने का अधिकार देता है, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या हम संविधान यानी संवैधानिक राष्ट्रवाद के ही विरोध में मोर्चा खोल लेंगे?  वह भी एक आंतकवादी के नाम पर। ऐसे आतंकवादी के नाम पर जिसने देश की राजधानी में लोकतंत्र के पवित्र मंदिर यानी हमारी संसद पर हमले की साज़िश रची हो और जिसे देश की अदालत ने दोषी करार दिया हो? यह भी सच्चाई है कि हमारे संविधान ने हमें फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन यानी अपने विचार प्रकट करने की आज़ादी दे रखी है, लेकिन क्या किसी आतंकवादी का समर्थन करना अभिव्यक्ति की आज़ादी कहा जा सकता है? क्या हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश विरोधी गतिविधियों को जायज़ मान सकते हैं? क़ानून हमें आज़ादी देता है, लेकिन देश हित में वह हमारी आज़ादी की हदें तय भी करता है। किसी भी देश में या कहें कि परिवार में किसी भी मसले पर दो तरह के विचार हो सकते हैं, लेकिन मैं साफ़तौर पर मानता हूं कि परिवार को तोड़ने के विचार का हमेशा विरोध ही होना चाहिए।
 
मुझे लगता है कि अब वक़्त आ गया है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी या कहें कि विचार व्यक्त करने की आज़ादी के अधिकार पर नए सिरे से चर्चा होनी चाहिए और इसकी हदें साफ़ तौर पर तय की जानी चाहिए। जेएनयू कैंपस में देश को तोड़ने के समर्थन में साफ़-साफ़ नारे लगाए गए। चंद गुमराह युवाओं की भीड़ ने नारे लगाए कि कश्मीर आज़ाद किया जाए। बंगाल और केरल की आज़ादी के भी नारे लगाए। कश्मीर के अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस के समर्थन में भी नारे लगाए। एक नारा यह भी लगा कि भारत तेरे टुकड़े होंगे। विरोध कर रहे छात्र गो बैक इंडिया, कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी, भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जैसे नारे भी लगा रहे थे। क्या कोई देशभक्त हिन्दुस्तानी ऐसे नारे सुनकर शांत रह पाएगा? देश के गद्दार क्या यह मानते हैं कि देश की न्यायपालिका न्याय नहीं कर रही है? जो लोग देश विरोधी मानसिकता रखते हों, क्या उन लोगों को हक़ है कि देश की पवित्र न्यायपालिका पर उंगली उठा सकें? दूसरी बात यह अगर प्रदर्शनकारी जायज़ मांग उठा रहे थे, तो फिर उनमें से बहुतों ने मुंह क्यों ढके हुए थे? अगर उनकी मांगें सही थीं, तो फिर उन्हें मुंह छुपाने की क्या ज़रूरत थी? 
 
एक बात और मुझे बहुत परेशान करती है। वह यह कि मौजूदा दौर में हमारी सियासत का स्तर इतना गिरता जा रहा है कि कई बार शर्म आने लगती है। विपक्ष किसी मसले पर विरोध करते वक़्त यह भी नहीं देखता कि कहीं जाने-अनजाने में वह देशद्रोहियों की वक़ालत तो नहीं कर रहा। मैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को बयानबाज़ी करते वक़्त संयम बरतने की सलाह ज़रूर दूंगा। वे कह रहे हैं कि उन्हें गांधी यानी बापू के हत्यारों से देशभक्ति का पाठ नहीं पढ़ना। मैं ज़ोर देकर कहना चाहता हूं कि बापू के हत्यारों के बारे में संघ परिवार और बीजेपी कई बार अपने विचार खुलकर व्यक्त कर चुकी है, लिहाज़ा राहुल का यह बयान समझ से कोसों परे है। उन्हें यह तो पता होगा कि नाथूराम गोडसे को इस देश के कानून ने ही फांसी पर लटकाया था। लेकिन राहुल अगर मानते हैं कि राष्ट्रवादी विचारधारा वाले देश के सारे नागरिक ही बापू के हत्यारे हैं, तो यह हास्यास्पद है। अगर ऐसा है, तो क्या राहुल अब भी यह मानते हैं कि देश का सारा सिख समुदाय इंदिरा गांधी जी का हत्यारा है? राजधानी दिल्ली समेत देश भर में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के वक़्त तो ऐसा ही लग रहा था। इस तरह की सियासी सोच बदलनी होगी। कोई समुदाय किसी का हत्यारा या किसी के प्रति अपराध करने वाला नहीं हुआ करता। ऐसा करने वाले सभी लोग व्यक्तिगत स्तर पर देश विरोधी ही कहे जाएंगे।
 
मेरा कांग्रेस से सवाल है कि हमारे लोकतंत्र के प्रतीक संसद पर हमला करने वालों को क्या सज़ा नहीं मिलनी चाहिए थी? क्या कांग्रेस अफ़ज़ल गुरु को शहीद मानती है? क्या कांग्रेस मानती है कि कश्मीर को आज़ाद कर दिया जाना चाहिए? क्या कांग्रेस हुर्रियत कांफ्रेंस का समर्थन करती है? क्या कांग्रेस मानती है कि देश का विभाजन कर दिया जाना चाहिए? अगर नहीं मानती, तो फिर कुछ गुमराह लोगों के समर्थन में बयानबाज़ी करने से पहले कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेताओं को ज़रा विचार तो करना ही चाहिए। सियासत करनी है, तो कुछ भी बोलने से काम नहीं चलेगा। कम से कम ऐसे मसलों पर तो सावधानी से बोलें, जो देश की सुरक्षा, देश हित के मुद्दों से जुड़े हों। क्या यह देश के साथ बड़ा मज़ाक नहीं है कि कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला देश के गद्दार अफ़ज़ल गुरु के नाम के आगे ‘जी’ जैसा सम्मानित संबोधन लगाएं? इतने संवेदनशील मुद्दे पर बयान जारी करने की हड़बड़ी में वे एक क़दम और आगे निकल गए। उन्होंने संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु को सुप्रीम कोर्ट पर हमले का दोषी बता दिया। इससे ही साफ़ हो जाता है कि कांग्रेस किसी भी मसले पर कितनी गंभीरता से सोचती है।
 
आपको याद होगा कि बिहार विधानसभा चुनावों से पहले देश में असहिष्णुता के नाम पर नफ़रत का माहौल बनाया गया। इरादा साफ़ था कि किसी तरह बिहार में एनडीए को हराया जाए। अब ज़रा फिर से टाइमिंग पर गौर कीजिए। कुछ राज्यों में जल्द ही चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में देश विरोधी लॉबी ने एक बार फिर यह साज़िश रची है कि देश को किसी भी स्तर पर बांट दिया जाए। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि वे इसमें कतई कामयाब नहीं होंगे। मैं एक बार फिर देश के ज़्यादातर नौजवानों का जज़्बा महसूस कर निश्चिंत हूं कि देश विरोधी ताक़तों को मुंहतोड़ जवाब मिलेगा। नफ़रत की ऐसी राजनीति की जितनी भर्त्सना की जाए, कम है।
 
 

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My visions for Delhi stems from these inspiring words of Swami Vivekanada. I sincerely believe that Delhi has enough number of brave, bold men and women who can make it not only one of the best cities.

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