विजय गोयल
(लेखक बीजेपी के राज्यसभा सदस्य)
हमारी दिल्ली की सरकार ने तो जनता को मूक और बधिर मान लिया है। जिस तरह से चाहें, हांके जा रहे हैं। एक तो आज पब्लिक इतनी परेशान है कि उसके पास आवाज उठाने का समय और दम नहीं है और दूसरा उनको विश्वास नहीं है कि उनके कहने से कुछ होगा।
इसलिए आपने देखा होगा कि केन्द्र सरकार द्वारा डेंगू महामारी की चेतावनी देने के बावजूद भी दिल्ली सरकार ने समय रहते कोई कदम नहीं उठाया, न एमसीडी को डेंगू से निपटने के लिए बजट का आवंटन किया और न ही केन्द्र सरकार और एमसीडी के साथ समन्वय समिति बनाने की कोशिश की। डेंगू से सावधान रहने और इस बीमारी से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर मैंने दो दिन पहले तक दिल्ली सरकार का एक भी विज्ञापन नहीं देखा। हां, पर प्याज की खरीद -बिक्री के विवाद पर केन्द्र सरकार और एक चैनल को कोसते हुए हरेक अखबार में दिल्ली सरकार के करोड़ों रूपए के फुल पेज के विज्ञापन जरूर देखे।
जब 3000 लोग डेंगू की चपेट में आ गए और 23 मर गए, तब सरकार जागी और डेंगू के विज्ञापन दिए, पर विडम्बना देखिए कि राष्ट्रपति की 40 बच्चों की एक कक्षा पर करोड़ों रूपए होर्डिंग्स, विज्ञापन और रेडियो पर प्रचार के लिए फूंक डाले।
सैंकड़ों जगह मैंने बोर्ड लगे देखे, अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन देखे, जिन पर लिखा था, ‘इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बच्चों को पढ़ाएंगे’ विज्ञापन के नीचे दिल्ली सरकार का नाम लिखा था और लोगों से अपील की गई थी कि कार्यक्रम का प्रसारण टीवी पर जरूर देखें। मैं सोचने को मजबूर हो गया कि इसमें ऐतिहासिक जैसा क्या है, जिस पर जनता का करोड़ों रूपया फिजूल खर्च कर दिया गया और राष्ट्रपति ने कौन-सा इतिहास रचा है या रचने जा रहे हैं। सारी उम्र प्रणब मुखर्जी ने किसी न किसी पद पर रहते हुए किसी न किसी को पढ़ाया ही है। वित्त मंत्री रहते फाइनेंस का पाठ आदि।
और हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की तो राष्ट्रपति बनने से पहले शर्त थी कि मैं अपने पढ़ाने का क्रम जारी रखना चाहूंगा और उन्होंने अपने राष्ट्रपति के पूरे कार्यकाल में सैंकड़ों लेक्चर दिए होंगे। मुझे याद है कि वह हमारे श्रीराम काॅलेज आॅफ काॅमर्स में भी आए थे और उन्होंने लगातार डेढ़ घंटे तक क्लास ली थी। वे देशभर के बच्चों से रू-ब-रू होते रहते थे। क्या तब कोई सरकार करोड़ों के विज्ञापन के जरिए यह बात पूरे देष को बताती थी ?
अभी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी पूर्व राष्ट्रपति डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृश्णन के जन्मदिन यानी शिक्षक दिवस पर बच्चों के सवालों के जवाब दिए, पर केन्द्र सरकार ने इसका कोई ढिंढोरा नहीं पीटा तो फिर दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार को दिल्ली में बड़े-बड़े पोस्टर, बैनर लगाकर इतने बड़े पैमाने पर प्रचार करने की क्या जरूरत थी ?
जाहिर सी बात है कि राष्ट्रपति जी को केजरीवाल सरकार ने सियासत का शिकार बनाया। कोई कह सकता है कि राष्ट्रपति ने एक संदेष देने के लिए टोकन के रूप में एक स्कूल में पढ़ाया। उन्हें मालूम भी न था कि उनकी आड़ में आम आदमी पार्टी की सरकार करोड़ों रूपया खर्च कर बेजरूरत विज्ञापनों से पूरी दिल्ली में प्रचारित करेगी और उनके नाम का उचित-अनुचित लाभ उठाने की कोशिश करेगी।
अपनी पठशाला में राष्ट्रपति ने खुद माना कि बचपन में उन्हें पांच किलोमीटर दूर स्कूल में पढ़ने जाना पड़ता था। बारिष के दिनों कि दिक्कतें भी उन्होंने बच्चों से साझा कीं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके जिले में बहुत कम स्कूल थे। मेरा केजरीवाल सरकार से सीधा सवाल है कि एक घंटे के कार्यक्रम के विज्ञापनों और राष्ट्रपति महोदय के लिए केवल एक क्लास तैयार करने में खर्च किए गए रूपयों का इस्तेमाल स्कूलों में सुविधाएं बढ़ाने के लिए क्या नहीं किया जाना चाहिए था ? ऐसा करते तो ठोस काम होता। अगर इसमें दूरदर्शन एक घंटे के प्रसारण के खर्च को भी जोड़ लें तो बहुत बड़ी रकम बैठेगी। इतनी रकम केवल अपने अहंकार को तुष्ट करने के लिए दिल्ली सरकार ने खर्च कर दी।
पिछले महीने ही दिल्ली हाईकोर्ट ने पुरानी दिल्ली के कुरैशी नगर इलाके में टैंट में चल रहे एक स्कूल को लेकर दिल्ली सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। यह स्कूल 40 साल से बुरी हालत में है। उसकी इमारत 1976 में गिर गई थी। तब से ही बच्चे टैंट में पढ़ने को मजबूर हैं। दिल्ली सरकार इन विज्ञापनों पर खर्च किए गए पैसे से ऐसे स्कूलों की इमारत बनवाती तो कितना अच्छा होता।
लेकिन अफसोस की बात है कि केजरीवाल को व्यक्तिगत सियासत से फुर्सत हो, तब तो वे सही काम करें। दिल्ली में ऐसे बहुत-से स्कूल हैं, जहां पूरी सुविधाएं नहीं हैं। एक-एक कमरे में 80 से 100 बच्चे बैठते हैं। हालात यह है कि एक ही क्लास के कुछ बच्चे एक दिन आते हैं, कुछ दूसरे और कुछ तीसरे दिन। दिल्ली में स्कूलों की कमी और खस्ताहाली की बात क्या दिल्ली सरकार से छिपी हुई है ? उन स्कूलों की हालत सुधारने की बजाए इस तरह अनुत्पादक तरीके से सरकारी खजाना लुटाना कहां तक वाजिब है ?
राष्ट्रपति जी संभवतया अब इस बारे में खुद गंभीरता से सोच रहे होंगे। जो बच्चे कार्यक्रम में शामिल हुए, उनके व्यक्तित्व में एक दिन में कोई इज़ाफा होगा, यह भी कहा नहीं जा सकता। राष्ट्रपति ज्यादातर अंग्रेजी में ही बोले, ऐसे में हिन्दीभाशी इलाकों के छात्र-छात्राओं को दिक्कत हुई होगी। इस विशेष क्लास के लिए खासतौर पर एयर कंडीशन लगाया गया। इससे बच्चों में क्या संदेश गया होगा। मैं बार-बार कहूंगा कि देश के राष्ट्रपति को हल्की राजनीति में घसीटा गया है।
आम आदमी पार्टी के ही एक नेता ने मुझसे कहा कि जिस तरह दिल्ली सरकार के झूठ पकड़े जा रहे हैं, जिस तरह से सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं, उससे मुख्यमंत्री बौखला गए है। लेकिन क्या इससे संवैधनिक व्यवस्था को उलट-पुलट किया जा सकता है ? केजरीवाल जरा सोचें कि राष्ट्रपति को सियासत में घसीटना कहा तक सही है ? राष्ट्रपति को सियासी मुहरा बनाकर देष की संवैधानक व्यवस्था को अंगूठा दिखाने से व्यक्तिगत अहम की तुष्ट तो हो सकती है, सामाजिक दायित्वों की पूति नहीं हो सकती। ‘आप’ के नेता ने मुझे बताया कि आम आदमी पार्टी अपने विधायकों की गिरफ्तारी से डरी हुई है। मुझे कहना है कि ‘आप’ के जो विधायक गिरफ्तार किए गए हैं, वे किसी सियारी गतिविधि की वजह से तो नहीं पकड़े गए। जो पकड़े गए हैं, वे आपराधिक मामलों के कारण हैं। सरकार का प्रचंड बहुमत है, सरकार गिरने वाली नहीं कि राश्ट्रपति की जरूरत पड़े और ऐसी बिना मांगी चमचागिरी करने की जरूरत हो।
मुझे याद है जब मैं पुरानी दिल्ली चांदनी चैक से सांसद था, तब हमने गली लम्बी वाली, गली बंदूकवाली, कूचा पातीराम, माॅडल टाउन में एमसीडी स्कूलों का कायाकल्प किया था। हमने एक उदाहरण पेष किया था कि एमसीडी का एक भी पैसा खर्च किए बिना लोगों के सहयोग से एमसीडी स्कूलों में पब्लिक स्कूलों जैसी सुख-सुविधाएं एवं सफाई हो।
जब राष्ट्रपति डाॅ0 अब्दुल कलाम को हमने बताया तो उन्होंने इन एमसीडी स्कूलों को आकर देखने की इच्छा प्रकट की और हमें पत्र लिखा। किन्तु बाद में क्योंकि एमसीडी में हमारी सरकार थी और दिल्ली में कांगे्रस की सरकार थी तो उन्हों विवाद न हो, इसलिए स्वीकृति देने के बाद भी आना उचित न समझा।
पर यहां तो राष्ट्रपति का नाम बड़ी बेदर्दी से कैश किया गया। मानों राष्ट्रपति को लाइम-लाईट की जरूरत हो और कोई देने वाला न हो या इस बात से कोई बड़ी भारी तब्दीली आने वाली हो। फिर दिल्ली की आम आदमी सरकार ने पूरी दिल्ली में बउ़े-बड़े पोस्टर, बैनर लगाकर इनते बड़े पैमाने पर प्रचार क्यों किया ? इस किस्म की शोबाज़ी से देश या कहें कि देश की राजधानी दिल्ली में विकास का कोई काम तो हो नहीं सकता, फिर आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली के आम आदमियों के करोड़ों रूपए बेकार के प्रचार क्यों खर्च किए ? सवाल यह है कि सर्वोच्च पद पर बैठी कोई विभूति अगर देष को लोगों से, छात्र-छात्राओं से या किस भी तबके के साथ ज्ञान बांटे, तो क्या यह प्रचार करने की बात है ?
एक और अहम बात कहना चाहता हूं। देश के किसी आम नगारकि के अंदर इस किस्म की महीनी सियात से दो-चार होने का माद्दा नहीं होता। न आम इंसान को यह सब सोचने-समझने की जरूरत है, न ही उसके पास इतना वक्त है कि इसका विश्लेषण करे, तो फिर दिल्ली सरकार ने इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति की पाठषाला के चकाचैंध वाले विज्ञापन आम आदमी के करोड़ों रूपए खर्च कर किस इरादे से लगवाए ?
यह बात प्रेस कान्फ्रेंस, मीडिया और समाचार-पत्रों के जरिए बताई जा सकती थी, किन्तु आम आदमी पार्टी की सरकार अपनी षान में खुद ही कसीदे पढ़ने की कवायद में उसने पूरी दिल्ली में बड़े-बड़े पोस्टर लगा दिए।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को जांच करानी चाहिए कि दिल्ली का कितना पैसा दिल्ली सरकार ने फिजूल में बर्बाद कर दिया। वैसे दिल्ली सरकार के लिए यह कोई नई बात नहीं है। पहले भी फिजूल के विज्ञापनों पर वह करोड़ों रूपए लुटा चुकी है। मैं इस बारे में विरोध जताने के लिए राष्ट्रपति से मिलने का वक्त मांगूंगा। देश के सम्मानित पदों को सियासत में घसीटने की इजाज़त किसी को नहीं दी जा सकती।
यह बात दिल्ली के मुख्यमंत्री को अब तो समझ में आ ही जानी चाहिए। साथ ही राष्ट्रपति महोदय को भी सोचना चाहिए था कि कोई उनके नाम का न बेजा इस्तेमाल करे और न उनके नाम से बेजा खर्च हो।
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