विजय गोयल
(लेखक बीजेपी के राज्यसभा सदस्य है)
पिछले दिनों दिल्ली के चांदनी चैक की चुन्नामल हवेली में बड़े प्रमुख, बुद्धिजीवी लोग जो पर्यटन, विरासत, संरक्षण से जुड़े हैं, इकट्ठे हुए। मुझे नहीं मालूम उस मीटिंग में क्या तय हुआ और उसके क्या परिणाम निकलने वाले हैं। हम केवल जुबानी जमा खर्च कर रहे, या इसके परिणाम भी निकल रहे हैं।
हमारे देश में हैरिटेज पर्यटन एक फैशन हो गया है। बुद्धिजीवियों के लिए हैरिटेज एक स्टेटस सिम्बल बनता जा रहा है। लोग हैरिटेज की बात तो करते हैं, किन्तु उसके लिए कुछ करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे उसकी तारीफ तो करते हैं, किन्तु उसको बचाने के लिए आगे नहीं आते। धीरे-धीरे जब ये सब हवेलियां, स्मारक और पुरातत्व महत्व की चीजें ढह जाएंगी तब तो बात करना भी बन्द हो जाएगा। हम केवल उनको फोटो में ही देख पाएंगे।
और लोग क्या कर रहे हैं, मुझे पता नहीं, किन्तु मैं पिछले कुछ सालों से एक पुरातत्व महत्व की हवेली को संरक्षित करने में लगा हूं, उसके संरक्षण में मेरे पसीने छूट रहे हैं, क्योंकि कहीं से न तो कोई मदद और न ही कोई जानकारी मिलती है। और इसके साथ-साथ गलियां बनाने के काम में तो काफी परेशानियां आ रही हैं, क्योंकि विभिन्न विभागों से काम लेना कोई आसान बात नहीं है। सरकार के विभिन्न विभागों दिल्ली सरकार, ए.एस.आई, एम.सी.डी., डी.डी.ए., हैरिटेज कनवर्जन कमेटी में समन्वय नहीं है।
चांदनी चैक में करीब 525 हवेलियां हैं, जो 20वीं षताब्दी में बनी थी । चांदनी चैक पर हिन्दू, मुगल, ब्रिटिष सभी की संस्कृति का प्रभाव पड़ा है। चांदनी चैक में बहुत-सी ऐसी अच्छी पुरानी हवेलियां हैं जो जर्जर अवस्था में हैं, जिनको मरम्मत की जरूरत है। धर्मशालाओं, हवेलियों में गोदाम खुल गए हैं। हवेलियां टूट-टूट कर मार्किटों की शेप ले रही हैं।
दो दिन पहले जब मैंने चांदनी चैक में मार्च निकाला, ‘चांदनी चैक बचाओ – पर्यटन बढ़ाओ’ तब मैं देख कर हैरान हो गया कि कई आकर्शक भवनों को माॅर्डन तरीके से ज्वैलरों के शीशे के बड़े-बड़े शोरूम में तब्दील कर दिया गया है, जो एक गहरा धब्बा-सा चांदनी चैक की विरासत के ऊपर दिखाई देता है। अवैध निर्माण होने के बाद भी भ्रश्टाचार के कारण उनको रोका नहीं गया। बात तो बहुत हुई, किन्तु थोक व्यापार वालों को बाहर गोदाम नहीं दिए गए और यहां से थोक व्यापार हटाया नहीं, जिसके कारण यहां के दुकानदार भी दुःखी हैं और यहां आने वाले भी दुःखी हैं।
चांदनी चैक को लेकर मैं बहुत निराश हूं। सबसे अच्छी व बड़ी जो हवेलियां हैं, वे एक के बाद एक लालची बिल्डरों द्वारा तोड़ी जा रही हैं या यूं कहिए गिनती की हवेलियां बची हैं। दिल्ली सरकार व एमसीडी अपनी हैरिटेज की लिस्ट को लेकर घूम रही है। उसको मालूम नहीं है कि इस हैरिटेज लिस्ट में केवल दस प्रतिशत ही स्मारक और हवेलियां बची हैं बाकी या तो खंडहर हो गई हैं, या जिनका जीर्णोद्धार भी होना संभव नहीं है या फिर वे बदल कर भद्दे ढांचों में बदल गई हैं। आज जरूरत है, बची हुई हवेलियों पर ध्यान देने की।
पुरानी दिल्ली में तो अब केवल दो तरह के लोग रहते हैं। ज्यादातर वे जिनके पास यहां से निकलकर बाहर रहने का कोई आशियाना नहीं है या वे लोग जो वर्शों-वर्श रहते हुए अब चांदनी चैक को छोड़ना नहीं चाहते। आबादी निरन्तर घट रही है और इसका डेमोग्राफिक बैलेंस भी बिगड़ता जा रहा है। मुसलमानों को ये जगह ज्यादा सुरक्षित लगती है। हिन्दुओं को चाव नहीं रहा। आगे आने वाली पीढ़ी की हैरिटेज और हमारी विरासत के अन्दर कितनी रूचि रहेगी, कहा नहीं जा सकता है।
सवाल यह है कि ये बची-खुची पुरातत्व महत्व की हवेलियां कैसे बचेंगी ? सरकार को चाहिए कि इन हवेलियों के भारी रख-रखाव के लिए इन हवेलियों के मालिकों को अच्छा फंड दें, क्योंकि अब एक हवेली में दस-दस किराएदार रहते हैं। किराएदार कहता है कि हम क्यों पैसा खर्च करें हमारी बिल्डिंग नहीं है और मकान मालिक कहता है मैं क्यों खर्चा करूं मैं तो यहां रहता नहीं हूं। दूसरे, इन हवेलियों को रेस्तरां, खान-पान, मिठाई, बुटिक, गेस्ट हाउस, होटल, ज्वैलरी, गिफ्टस, स्पा, ब्यूटी सेंटर, इसी प्रकार डांस, ड्रामा, म्यूजिक के सांस्कृतिक केन्द्र के लिए खोल देना चाहिए और कानून इतने नरम होने चाहिए कि किसी को इजाजत लेने की भी जरूरत न पड़े, तभी इनका उपयोग व रख-रखाव हो पाएगा।
हैरिटेज हवेलियों में यह रोक लगनी चाहिए कि उसमें गोदाम, ज्वलनशील पदार्थ इत्यादि का कोई काम न हो। पिछले दिनों दिल्ली नगर निगम से लड़-लड़ कर पुरातत्व महत्व की बिल्डिंग्स पर किसी प्रकार का कोई सम्पत्ति कर न लगे, इसको बड़ी कोशिश करके मैंने पास करवाया था।
यह बड़े आशचर्य की बात है कि सरकार इन प्राइवेट हवेलियों एवं स्थानों पर दुनिया भर के कानून तो बना देती है, पर उनको मदद कुछ भी नहीं देती। जब आप इनके लिए कुछ कर या दे नहीं रहे तो कानून बनाने का आपके पास क्या अधिकार है। इन हवेलियों के रख-रखाव के लिए अनुदान के साथ-साथ इसमें जो लोग कुछ गतिविधि करना चाहें, उनको ब्याज रहित लोन भी दिया जाना चाहिए।
दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम, केन्द्र सरकार इन तीनों में पर्यटन व हैरिटेज संरक्षण के लिए कोई समन्वय नहीं है और ये सब केवल घोषणाएं करते रहते हैं, जैसे जो आता है, कहता है चांदनी चैक में ट्राम चला देंगे, चांदनी चैक में रिक्षों के लिए तो जगह है नहीं ट्राम कैसे चलाएंगे। कोई घंटाघर दोबारा बनाने की बात करता है तो कोई मोनो रेल चलाने की। ये सब लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, उनको चांदनी चैक के बारे में कुछ मालूम नहीं है। मुझे याद है कि लाल किले के बाहर 33 एकड़ का पार्क बनाने के लिए हमें कितने पापड़ बेलने पड़े थे, तब जाकर आज वहां हरियाली नज़र आती है।
चांदनी चैक एक बहुत बड़ा कूड़ाघर बनाता जा रहा है, जिसमें ट्रक, मोटर, रिक्षा, टैम्पो, बैटरी रिक्षा, आॅटो, ठेला, प्राइवेट वाहन सब चल रहे हैं, पैदल चलने वालों के लिए जगह ही नहीं है। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का तो यह हाल है कि यहां व्यक्ति समय पर पहुंच भी जाए तो स्टेषन के अन्दर जाने तक में ही उसकी ट्रेन छूट जाती है।
सच मानिए तो किसी ने चांदनी चैक को अब तक एक्सप्लोर ही नहीं किया। अकेले ऐसे खूबसूरत-खूबसूरत पचास से अधिक जैन मंदिर हैं, जिन्हें देखकर लोग दांतो तले अंगुली दबा लें, जो ताजमहल का मुकाबला करते हैं। आठ फुट की गली में आप कल्पना भी नहीं कर सकेंगे कि 3000 गज के अन्दर विशाल जैन मंदिर सोने से मढ़े शिखर खड़े हुए हैं। मंदिर ज्यादा हैं, इनमें आने वाले जैन लोग कम हो गए हैं। अभी तो दिल्ली वालों ने ही चांदनी चैक को पूरा नहीं देखा, बाहर का टूरिस्ट क्या देखेगा ?
बहुत सारे स्मारक, हवेलियां ऐसे हैं, जिन तक पहुंचना नामुमकिन है। न तो चांदनी चैक में कोई टूरिस्ट आॅफिस है और न कोई साइनेज है और न ही कोई बताने वाला। पुराने षहर के लोग जितनी मदद कर दें उतना ही टूरिस्ट को पता चलता है। रही-सही कसर चांदनी चैक की भीड़भाड़, अलूल-जलूल इमारतें, बेतरतीब बने मकान, अव्यवस्थित सड़कें, गलियां और ट्रैफिक आदमी को बार-बार सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि मैं जाऊं या न जाऊं। छोटे-मोटे रेस्टोरेंट को छोड़ दिया जाए तो कहीं बैठने का स्थान तक नहीं है। जो हवेलियां, धर्मस्थान और जो स्मारक बचे भी हैं, उनकी देख-रेख ऐसे मैनेजर या चैकीदार कर रहे हैं जिनको न तो आर्किटेक्टचर का पता है और न संवारने का। अच्छी इमारतों को लाल-नीले बेकार रंगों से पोता जा रहा है। फव्वारों का शहर टाॅयलेट्स का षहर बनता जा रहा है।
दिल्ली का यह शहर ओल्ड सिटी नहीं, गोल्ड सिटी है, पर इसको बिजली की लटकती मोटी-मोटी तारों के गुच्छों ने बर्बाद कर दिया है। गोरे आते हैं तो आष्चर्य करते हैं कि देश की राजधानी की पुरानी दिल्ली में इतना बुरा हाल जिसे हमें ‘वल्र्ड हैरिटेज सिटी’ का नाम देने की बात करते हैं। कभी ट्राम पुरानी दिल्ली की षान थी, अब मेट्रो षान है। मेट्रो के कारण लोगों में चांदनी चैक के लिए आकर्शण और बढ़ा है।
मुसीबत यह है कि शाहजहानाबाद डवलपमेंट बोर्ड भी केवल नाम का है। इसमें जो लोग हैं, एक-आध को छोड़ उनकी कोई इच्छाशक्ति नहीं है कि इस पुरानी दिल्ली को ठीक किया जाए। मैं इसके लिए किसी एक को दोशी नहीं मानता, सभी दोशी हैं। इन हवेलियों और स्मारकों के बारे में विस्तृत जानकारी फोटो और वीडियो के साथ इकट्ठी की जानी चाहिए और एक-एक को कैसे संरक्षित किया जाएगा, इस पर योजना बनानी चाहिए। शाहजहानाबाद विकास बोर्ड को शक्तिशाली करके ही कोई योजना बनाई जा सकती है। पर सवाल यह है कि कोई सपने तो देखे और फिर उनको पूरा करने की कोशिश करे।
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