विजय गोयल
(लेखक बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं)
आपने कभी सोचा है कि जिन-जिन शहरों में हमारे प्राचीन मंदिर हैं I जिनके प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा है I वहीं-वहीं पर करोड़ों.अरबों की लागत से विभिन्न संस्थाएं अपने बड़े-बड़े भव्य मंदिर इस्कॉनए अक्षरधामए साई टेंपल इत्यादि बना रहे हैं, पर जिन प्राचीन मंदिरों के कारण ये धार्मिक स्थान जाने जाते हैं I उनके ऊपर और उनके आस-पास के क्षेत्र में कोई एक पैसा भी लगाने को तैयार नहीं है। यानी कि ये भगवान के नाम को ब्रांड की तरह इस्तेमाल कर रहे हैंए जिससे खिंचे हुए लोग इन क्षेत्रों में पहुँच जाएए तो उनके बने हुए मंदिरों को भी देखेंगे और तारीफ़ करेंगे।
कुछ समय पहले जब मैं वृंदावन गया था I तो मैने देखा कि एक पतली सी गली के अंदर हमारे बाँके बिहरी का मंदिर था। मुझे लगता था कि बहुत बड़े क्षेत्र में यह वृंदावन का बाँके बिहरी का मंदिर होगा, कोई कुंज होगा और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली होगीए क्योंकि हरे रामा हरे कृष्णा के पोस्टरों हैं, उनमें तो ऐसा ही दिखाया जाता है, पर वहां जाकर मैं बहुत मायूस हुआ। मैंने देखा कि मंदिर छोटा था I किन्तु वहां पर भगवान का जो स्वरूप था वह बड़ा ही मनमोहक था। पर मैं मायूस हुआ, जब देखा कि अंदर खचाखच भीड़ए बाहर सड़कों पर गन्दगीए टूटी हुई सड़केंए चारों तरफ ऊंची-ऊंची प्राइवेट बिल्डिंगों से वह घिरा हुआ था और वहां विकास नाम की चीज़ नहीं थी।
मुझे लोगों ने कहा कि पास में इस्कॉन टेंपल भी है I उसे देखने आप ज़रूर जाएं। मैं जब इस्कॉन टेंपल पहुंचाए तक उसके भवनए ऊंची अट्टालिकाएं I साज-सज्जा I स्वच्छता को देख कर दंग रह गया। इस्कॉन की बहुत सारी संस्थाएं बन चुकी हैं और हरे रामा-हरे कृष्णा के नारे के साथ इन्होंने दुनिया भर में बहुत सारे मंदिर खड़े किए हैं I पर वृंदावन में मेरे बांके बिहारी कृष्ण के मंदिर को क्या ऐसा भव्य नहीं कर सकते या उसके चारों तरफ की ज़मीन का विकास नहीं कर सकते थे ? आख़िरकार उनके मंदिर इस्कॉन टेंपल के नाम से ही जाने जाते हैं, राधा-कृष्ण, श्री राम और हनुमान जैसे देवी.देवताओं के नाम से नहीं जाने जाते। बिलकुल वैसे ही जैसे बिरला जी ने जो मंदिर बनवाएए वे बिरला मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुए।
देश भर में बड़े शहरों में इस्कॉन टेंपल हैं। सीधी सी बात है कि अगर कोई वृंदावन में कृष्ण मंदिर बनवाएगा I तो उसे वहां श्रद्धालुओं की भीड़ तो अपने आप ही मिल जाएगी। क्योंकि वृंदावन का नाम भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है। मंदिर भव्य होगाए तो बहुत से लोग दर्शनों के लिए उमड़ेंगे ही और फिर इन संस्थाओं का विस्तार स्वयं होता रहेगा। हो सकता है कि इस्कॉन संस्था बहुत से लोगों के रोज़गार का ज़रिया हो और समाज की भलाई के लिए भी काम करती होए लेकिन अगर संस्था के कर्ताधर्ताओं को भगवान कृष्ण में इतनी ही आस्था है I तो वृंदावन के बहुत से कृष्ण मंदिरों के जीर्णोद्धार का बीड़ा उन्होंने क्यों नहीं उठाते ? पैसे की कोई कमी तो है नहीं। अगर इस्कॉन वाले ऐसा काम करें I तो वृंदावन चमक सकता है। वहां एक विशाल इन्फ्रास्ट्रक्चर बन सकता है।
वहां आने वालों लिए भी कई तरह की सार्वजनिक सुविधाओं का इंतज़ाम किया जा सकता है। तब जाकर सही माइनों में कृष्ण भक्ति की बात समझ आती है।
इस्कॉन तो केवल एक ही नाम है। ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं। ज़रा सोचिए कि अगर सभी संस्थाएं मिलकर समाज के हित में काम करने लगेंए तो देश का कायाकल्प होने में कितनी मदद मिलेगी। ये ठीक है कि कुछ संस्थाएं जरूर काम करती होगी। इस्कॉन के एक प्रचारक मुझे मिले थे I मैंने उनसे इसी तरह का वाद-विवाद किया था। उनकी दिनचर्या भी बड़ी कठिन रहती हैं। यह जानकर मुझे प्रसन्नता हुई I पर मेरी इस बात का वह सीधा जवाब नहीं दे पाए।
राजस्थान के दौसा जिले के बांदीकुई में मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में मैं विकास का काम करना चाहता हूं। वहां छोटी-बड़ी सौ से ऊपर धर्मशालाएं बन गईं। इन भक्तों ने धर्मशालाओं पर तो लाखों-करोड़ों रुपए लगा दिए I पर इलाक़े की सड़केंए सीवर I बिजलीए पानी पर कोई एक रुपया भी ख़र्च करने को तैयार नहीं है। ज़ाहिर तौर पर जब वहां व्यवस्था नहीं होगीए तो धर्मशालाओं में भी कौन आएगा और एक बार आ गयाए तो दोबारा नहीं आएगा। वैष्णो देवी जैसे धार्मिक स्थान पर तो फाइव स्टार होटल तक बन गए हैंए पर आप आज भी देख सकते हैं कि भक्तों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है I उस पर कोई काम करने के लिए तैयार नहीं है।
आजकल प्रवचन करने वाले बाबाओं की भी अच्छी ख़ासी संख्या है। दिलचस्प बात यह है कि आज के मानसिक तनाव के दौर में जब आम आदमी के पास वक़्त की बेहद कमी हैए तब बहुत से बाबा देश भर में जगह-जगह पर कई-कई दिनों तक अच्छी ख़ासी भीड़ जुटा पा रहे हैं। वहां प्रवचन के अलावा भी आस्था से जुड़ी सारी चीज़ों का जमकर कारोबार होता है। लेकिन राम कथाए गीता और दूसरे भगवानों से जुड़े धार्मिक प्रवचनों के दौरान मंच की साज-सज्जा में भगवानों की भव्य तस्वीरों को कितनी जगह मिलती है यह देखने की बात है। राम-कृष्ण के नाम पर लोग जुटाए जाते हैं और फिर बाबा अपनी ही जय-जयकार करते हैं और सफल भी होते हैं I क्योंकि आज आम आदमी के दिल में श्रद्धा और आस्था तो हैए लेकिन उसके पास इतनी समझ नहीं है कि वह बाबाओं की गहराई को जान पाए।
मुझे जब मौका मिलता है, मैं हर धर्म के गुरुओं से मिलता हूं। वाद-विवाद करता हूं। मेरा मानना है कि उनमें कुछ तो ऐसी क्षमता है I जिससे खिंचकर लाखों लोग चले आते हैं। कोई तो बात है। कभी मैं ओशो की निंदा करता था I लेकिन जब उन्हें पढ़ाए तो आज मैं उनका फ़ैन हूं। उनकी तर्क शक्ति ग़ज़ब की थी। लेकिन दिक्कत क्या वे अपने जैसा किसी और को बना पाए ? यही बात सारे बाबाओं पर लागू होती है। मैं निरंकारी बाबा से मिला और बड़ा प्रभावित भी हुआ। मैंने उनसे कहा कि वे ऐसा नगर बसाएं I जिसमें रहकर लोग उनकी शिक्षाओं पर अमल करते हुए समाज की भलाई के काम करें। ताकि वह नगर उनकी शिक्षाओं से समाज सुधार का जीता-जागता उदाहरण बन सके। मैं इसी तरह की अपील सभी धर्मों के असरदार गुरुओं से करता रहता हूं।
हमारा देश बहुत बड़ा है। यहां के धर्म गुरुओं ने विदेश में अपने भव्य-दिव्य मंदिर बनवा रखे हैं। अच्छी बात है कि इस तरह भारतीयता का प्रचार विदेश में हो रहा है। लेकिन देश की भलाई के लिए कुछ नहीं किया जा रहा। बाबाओं पर अकूत दौलत है। सवाल यह है कि सारे बाबा एक साथ मिलकर क्यों नहीं बैठते और समाज की भलाई के लिए व्यापक योजनाएं क्यों नहीं बनाते ? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान में सारे बाबा लोग क्यों नहीं जुट जाते। लगता है कि धार्मिक बिरादरी का हाल भी नेताओं की तरह हो गया है। जिस तरह सियासत में आज एक पार्टी का नेताए दूसरी पार्टी के नेता को पल भर भी नहीं सुहाताए उसी तरह का बर्ताव धर्म गुरुओं में भी होने लगा है। धार्मिक बिरादरी सियासी नेताओं के साथ कॉम्पिटीशन करती लगती है।
अब तो बाबा लोग बड़े-बड़े व्यापार व उद्योग भी चला रहे हैं। बाबा रामदेव की पतंजलि तो आयुर्वेद के साथ-साथ नुडल्स तक पहुँच गई। श्री रविषंकर के साथ भी पहले ही आयुर्वेद का बड़ा व्यापार चलता है। अब वे प्रतिदिन उपभोक्ता के काम में आने वाली चीजें भी बाजार में ला रहे हैं। सतगुरू जग्गी वासदेव द्वारा प्रायोजित कम्पनी भी बहुत से क्षेत्रों में काम कर रही है।
गुरमीत राम रहीम सिंह तो फिल्में भी बना रहे हैं और हीरो भी बन गए।
प्रश्न यह है कि क्या इनकी ये षक्ति देष के विकास के लिए गरीब आदमियों के लिए योजना चलाने में लगती तो क्या ज्यादा बेहतर होता या फिर इन उत्पादों से कमाई कर उन्हें गरीब की योजनाओं में लगाने से।
कई बार लोग मुझसे कहते हैं कि बाबाओं पर उन्हें विश्वास नहीं है। मैं कहता हूं कि प्रवचन में बाबा सही शिक्षा ही देते हैं। हमीं हैं जो उन पर अमल नहीं करते। अब पर्दे के पीछे कौन क्या कर रहा हैए इससे किसी को तब तक क्या लेना-देनाए जब तक कि उसका असर समाज पर न पड़ रहा हो। बाबाओं के कमरों में ख़ुफ़िया कैमरे लगाने की क्या ज़रूरत है ? यह जानना क्यों ज़रूरी है कि वे क्या खा-पी रहे हैं।
प्रवचन सुनिएए आनंद लीजिए, आत्मसात करिए और सही राह पर चलिए। अच्छी चीज़ें ग्रहण कीजिएए बुरी पर ध्यान मत दीजिए।
आख़िर में मैं सभी संपन्न धर्म गुरुओं और उनकी संस्थाओं से अपील करता हूं कि वे देश के जीर्ण-शीर्ण पड़े धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार कराएं। एक-एक संस्था अगर दस-दस जर्जर मंदिरों को गोद ले लेए तो आसानी से बात बन जाएगी। इससे न केवल धर्म का काम होगाए बल्कि समाज का भी भला होगा।