विजय गोयल
(लेखक बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं)
यह ख़बर पढ़-सुन कर बहुत अच्छा लगा कि सऊदी अरब के रियाद शहर में मुस्लिम महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए।
इससे पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कहा था कि ‘भारत माता की जय’ का नारा पूरी दुनिया में गूंजना चाहिए। वे भारत माता की जय का नारा किसी पर थोपना नहीं चाहते, बल्कि ऐसा भारत बनाना चाहते हैं कि लोग ख़ुद ही यह नारा लगाएं। अब सऊदी अरब में मुस्लिम महिलाओं ने यह नारा लगाकर साबित कर दिया है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चमक रहा है।
भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां सबसे पुरानी हिंदू परंपरा आज भी जीवित है। यह हिंदू परंपरा की महानता ही है कि हमने जीवन देने वाले तत्वों और जीवन को बनाए रखने वाले घटकों को ईश्वर का नाम दिया। हिंदुओं ने ऐसा इसलिए किया, ताकि क़ुदरत के प्रति आदर बना रहे। हमने नदियों को पूजा, पेड़-पौधों को पूजा, हवा को पूजा, आकाश को पूजा, धरती को पूजा, सूरज को पूजा, तो इसके पीछे कोई दकियानूसी सोच नहीं थी, बल्कि वैज्ञानिक सोच रही है।
हिंदू जीवन जीने की पद्धति है, जिसे बाद में संकीर्णतावादी लोगों ने जातियों या समूहों तक सीमित कर बाहर से आए हमलावरों, लुटेरों की नज़रों की किरकिरी बनाकर रख दिया। अब तो देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि ख़ुद को खुलेआम हिंदू कहने में लोग दस बार सोचते हैं। उन्हें लगने लगा है कि अगर उन्होंने ख़ुद को सार्वजनिक तौर पर हिंदू कहा, तो कथित सेकुलर उन्हें दकियानूस समझ लेंगे। सरकारें भी इस सोच से अछूती नहीं हैं। सालों पहले रेल के सफ़र में सवेरे-सवेरे भजन बजाए जाते थे। लेकिन कुछ लोगों ने हिंदू-मुस्लिम की दलील देकर इन भजनों को बंद करा दिया, फिल्मी गानों की धुनें चल रही हैं। अब आप ही बताइए कि ये धुनें देश का कल्याण करेंगी या फिर किसी महापुरुष के जीवन के आदर्शों का भजन के रूप में सात्विक बखान?
कथित धर्म निरपेक्षता का छद्म विचार इस क़दर कैसे हावी हो गया? यह दुर्भाग्य की बात है। समाजशास्त्रियों को इसके कारण तलाशने चाहिए। मुझे तो लगता है कि दुनिया के क़रीब आने पर भौतिक चकाचौंध की चमक और हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था का सही तरीक़े से लागू नहीं होना ही इसकी मुख्य वजह है। लोकतंत्र की आख़िरी इकाई आप किसे कहेंगे?
अगर व्यक्ति को कहेंगे, तो फिर परिवार नामक व्यवस्था का क्या होगा? अब मेरी पीढ़ी और मेरे बुज़ुर्गों के लिए यह सवाल बहुत अहम है कि हमने लोकतंत्र को लागू करते समय भारतीय समाज की आख़िरी इकाई परिवार को क्यों नहीं माना? ऐसा कैसे हो सकता है कि एक घर या तय भौगोलिक सीमा में रहने वाले कुछ ख़ून के रिश्ते वाले लोग वहां तो एक अनुशासन में रहेंगे, लेकिन जब बाहर निकलेंगे, तो समाज के प्रति अनुशासन की कोई निजी परिभाषा तय करेंगे?
भारतीय समाज में पारिवारिक व्यवस्था और देश की राजनैतिक लोकतांत्रिक व्यवस्था का यही अंतर्विरोध ख़त्म किया जाना चाहिए। लेकिन यह कैसे होगा? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस अगर इस ओर काम कर रहा है, तो इसका स्वागत होना चाहिए। मैं तो मानता हूं कि आरएसएस की सामाजिक सोच में जो सांस्कृतिक समरसता रची-बसी है, उसका विरोध करने वाले देश का भला नहीं चाहते। आज़ादी के बाद से ही कुछ परिवार या व्यक्ति देश की सेवा के नाम पर निजी अस्मिता को ही महत्व दे रहे हैं।
यही वजह है कि आरएसएस जैसा सच्चे अर्थों में देशभक्त संगठन उनकी आंखों की किरकिरी है। सच्चाई यही है कि आज़ादी की लड़ाई या उसके बाद या फिर हाल के दिनों में आरएसएस पर जितने भी आरोप लगे, निराधार ही साबित हुए हैं।
अब तो यह फ़ैशन सा हो गया है कि देश के महान मूल्यों का मज़ाक उड़ाइए और ख़ुद को प्रोग्रेसिव कहिए। इतिहास गवाह है कि बादशाह औरंगज़ेब समेत कई शासकों ने गौहत्या पर उस समय भी कभी न कभी पाबंदी लगाई थी।
लेकिन अब अगर ऐसा किया जा रहा है तो उसका विरोध किया जा रहा है। गाय को अलग रखें, तो हिंदुओं ने तो सामाजिक जीवन में बहुत उपयोगी पशु-पक्षियों को देवी-देवताओं से जोड़ा था, क्योंकि लोगों की धर्म में आस्था है[ इस कारण से वे उन सबका सम्मान करने को तैयार हैं, जिनका कहीं न कहीं धर्म में उल्लेख आ गया है। शायद इसलिए ही कि उनका मान-सम्मान बना रहे। बंदर, बैल, भैंसा, शेर, चूहा, हाथी, मोर, हंस और बहुत सारे पशु-पक्षियों को देवताओं के साथ जोड़ा गया। अब कहने वाले उन पशु-पक्षियों को भी हिंदू करार दे सकते हैं।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी अगर कह रहे हैं कि वे भारत माता की जय नहीं बोलेंगे, तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है। लेकिन अगर उनका इरादा वाक़ई दुष्टतापूर्ण नहीं होता, तो उन्हें कहना चाहिए था कि उन्हें भारत माता की जय के नारे से ऐतराज़ नहीं है, लेकिन यह नारा ही किसी की देशभक्ति का पैमाना नहीं हो सकता। तब बात समझ में आ सकती थी। यह तो ऐसी ही बात है कि हिंदू गंगा को भी मां का दर्जा देते हैं, इसलिए हम गंगा मइया नहीं बोलेंगे। गंगा हिंदुओं की पवित्र नदी है, इसलिए हम मुस्लिमों के नेता होने के नाते गंगा सफाई अभियान में शामिल नहीं होंगे, लेकिन पीने के लिए गंगाजल पर बराबर का हक़ जताएंगे, क्योंकि भारतीय नागरिक होने के नाते यह हमारा अधिकार है। तो यह दोहरा रवैया नहीं चल सकता। ऐसे लोगों से मेरी अपील है कि वोट बैंक के लालच में देश की संस्कृति के साथ खिलवाड़ नहीं करें, क्योंकि ये किसी विशेष धर्म की बात नहीं, बल्कि इस देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब है।
मेरा आज भी चांदनी चौक समेत देश के कई हिस्सों में रह रहे मुस्लिम समाज के लोगों से क़रीबी रिश्ता है और मैंने देखा है कि दोनों समुदाय के लोग एक-दूसरे के त्योहारों में खुलकर भाग लेते रहे हैं। ईद के त्योहार पर मैं हमेशा मुस्लिम भाइयों सजा बधाई देने जाता हूँ। मैंने ईद हमेशा मनाई है, लेकिन दिखावे के लिए रमज़ान में रोज़ा-इफ़्तार कभी नहीं रखे। हां, हिंदू हूं, तो हिंदू त्यौहारों के दौरान व्रत ज़रूर रखे। अब क्या आप मुझे सांप्रदायिक कहेंगे? मुस्लिम भाई-बहन इस वजह से मुझसे मिलने में कभी भी कतराए नहीं। चांदनी चौक में आज भी चले जाइये, वहां स्कूलों में गीता का पाठ होता है और हिन्दू-मुस्लिम सब बच्चे मिलकर उसको गाते हैं ।
रामलीलाओं के माहौल में आप देश भर में सर्वे करा लीजिए। मुख्य किरदार निभाने वाले कई मुस्लिम कलाकार मिल जाएंगे। ऐसा भी नहीं मिलेगा कि उनके परिवार इस बात के ख़िलाफ़ हों। हिन्दुओं की अमरनाथ की यात्रा ने जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों को भारी रोजगार दे रखा है, यहाँ तक कि वहां प्रसाद भी स्थानीय मुस्लिम किसी दुसरे को बेचने नहीं देते । माता वैष्णो देवी में हिन्दू तीर्थयात्रियों के सामान और बच्चों को ऊपर भवन तक चढ़ाने वाले पिट्ठू माँ के मंदिर तक चले जाते हैं ।
मुस्लिम समाज की पढ़ाई-लिखाई, रोज़गार और दूसरे बुनियादी मसलों की वकालत के बजाए वोट बैंक की राजनीति की जा रही है। वोट बैंक की राजनीति के चक्कर में ज़्यादातर मुस्लिम नेताओं ने ग़लत माहौल बना दिया है। मुस्लिम नेता ही नहीं, मुस्लिम वोटों के सहारे राजनीति चमकाने वाले बहुत से हिंदू नेता और पार्टियां भी इस जमात में शामिल हैं।
पहले केवल कांग्रेस यह बंदरबांट करती रहती थी। लेकिन अब इस मुक़ाबले में कई पार्टियां हैं। कांग्रेस अपने अच्छे जनाधार वाले प्रदेशों में बहुत पीछे रह गई है, इसलिए बौखला गई है।
यही वजह है कि हिंदू मान्यताओं के ख़िलाफ़ किसी भी स्तर तक जाकर ध्रुवीकरण करना ही उसका लक्ष्य होता है। अब इससे चाहे कांग्रेस को फ़ायदा हो या बीजेपी को या फिर किसी तीसरे पक्ष को, आख़िरी तौर पर इससे देश का नुकसान होता है, मैं तो ऐसा ही मानता हूं।
भारत माता की जय को किसी को भी विवाद नहीं बनाना चाहिए । ये धरती सबकी माँ है, इसलिए तो ‘भारत माता’ और ‘मादरे वतन’ ये शब्द हैं।
— ० —