विजय गोयल
(लेखक बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं)
पिछले दिनों मीडिया घराने से जुड़े एक बड़े उद्योगपति के यहां विवाह समारोह में जाने का मौका मिला। लगा कि यह विवाह शायद कुछ अलग होगा, पर मैंने देखा कि विवाह की वही सब रस्में थीं जो वर्षों से चली आ रही हैं। सार कुछ उतना ही नाटकीय। यह बात मैं रस्मों के लिए नहीं, रस्मों में प्रयोग होने वाली वेशभूषा के लिए कर रहा हूं। जैसे घोड़ी पर बैठना, मुकुट लगा लेना, पगड़ी पहनना, तलवार लटकाना, काजल लगवाना, रंगीन अचकन पहनना और उसके बाद बैंड बाजा लेकर सड़क के बीचों-बीच बाजार से निकलना। इन पर न उनका प्रयोग करने वाले को आश्चर्य होता है, न देखने वाले को।
एक बार मैंने एक मिलन समारोह में कुछ लोगों से कहा कि आप राजस्थानी पगड़ी पहन लीजिए। लोगों को लगा जैसे मैं कोई अजीबोगरीब बात कर रहा हूं। शादी के लिए जो अचकन हम सिलवाते हैं, वह विवाह के एक दिन बाद अलमारी में लटकी की लटकी रह जाती है। फिर किसी दूसरे के विवाह पर भी हम उसे पहनने के लिये तैयार नहीं होते। क्यों न इन अचकनों और पगड़ियों का एक म्यूजियम बनाया दिया जाए, जिसमें लोग अपनी अचकन और पगड़ी रख दें, बाकायदा उस पर शादी की तिथि डालकर ! मैं सोचता था, आधुनिक युग में धीरे-धीरे शादी की नाटकीय रस्में समाप्त हो जाएंगी, लेकिन विवाह पर होने वाली रस्में और बढ़ती ही जा रही हैं। दहेज प्रथा कम हुई है, लेकिन इसके बदले लोगों ने शादी में भव्य इंतजाम या कहें कि दिखावा बढ़ा दिया है।
पहले विवाह समारोह हफ्ता भर होते रहते थे। धीरे-धीरे ये औपचारिक हो गए। अब फिर से लोगों ने डेस्टिनेशन शादी का रूप देकर इनको चार-चार दिन का बना दिया। पिछले दिनों दो मित्रों के यहां विवाह समारोह में गया। वहां मैंने देखा कि एक नई प्रथा और शुरू हो गई है। शादी से पहले ही दोस्त-मित्र होने वाले दूल्हा-दुल्हन को बुलाकर पार्टियां करने लगते हैं। पहले किसी समय में लड़का-लड़की हल्दी लगने के बाद शादी के दिन तक एक-दूसरे से मिल नहीं सकते थे। पर अब शादी से पहले होने वाली ये पार्टियां शादी के खर्चों को और बढ़ा रही हैं। पहले इस तरह की पार्टियां शादी के बाद ही होती थीं।
अभी लोगों की प्रवृत्ति यह हो चली है कि शादी पर कैसे ज्यादा से ज्यादा खर्च कर स्टेटस बनाया जाए। शादी के कार्ड भी अब हैसियत दिखाने का जरिया बन गए हैं। भव्य कार्डों के साथ मेवे, बड़े-बड़े गिफ्ट और वाइन भेजी जाती है, जबकि शादी की मिठाई के नाम पर सिर्फ मिठाई के चंद टुकड़े होते हैं। मजे की बात यह है कि गिफ्ट के डब्बे गिफ्ट से ज्यादा महंगे होते हैं, हालांकि वे किसी काम नहीं आते। विवाहों का हाल यह हो गया है कि बुलाने वाला भी दुखी और जाने वाला और ज्यादा दुखी। पहले लोग अपने घर के पास ही टैण्ट लगाकर विवाह समारोह करते थे। निमंत्रण आस-पड़ोस और रिश्तेदारों को ही भेजते हैं और उनको असुविधा न हो इसलिये घर पर सुंदर लाइट और बाहर टैंट लगा दिये जाते थे। फिर ये टैंट पड़ोस के पार्कों में पहुंच गए। पार्कों से होटल, होटल से बैक्विट हॉल और वहां से फार्म हाउस में आ गए।
अब यह किस्सा डेस्टीनेशन शादी तक पहुंच गया है। लोग अपने बच्चों की शादी उदयपुर और जयपुर जैसे शाही शानो-शौकत वाले शहरों में जाकर करते हैं। कुछ लोग विदेशों में भी डेस्टीनेशन शादियां कर रहे हैं। शादी की रस्मों को देखें तो उनमें पहले रिश्तेदारों को महत्व दिया जाता था। शादी के समय मिलनी होती है, लड़की के पिता की लड़के के पिता से, चाचा की चाचा से, ताऊ की ताऊ से। अब शादी में उपस्थिति के मायने बदल गए हैं। कई बार लोग पैसे देकर नामी अतिथियों को बुलाते हैं। फिल्म स्टार विवाह समारोह में परफॉरमेंस ही नहीं देते, बल्कि वे ऐसे शामिल होते हैं जैसे दूल्हे या दुल्हन के परिवार वालों से उनका बहुत अच्छा परिचय हो।
लोगों ने रिश्ते करवाने को भी एक व्यवसाय बना लिया है। शादियों में इवेंट मैनेजमेंट की भूमिका बढ़ गई है। पहले ही पूछ लिया जाता है कि कितने करोड़ की शादी होगी। इसमें जो रिश्ता करवाने वाला होता है, उसका वर और वधू पक्ष यानी कि दोनों तरफ से दो-दो प्रतिशत कमीशन होता है। लड़का-लड़की के प्री-वेडिंग शूट्स भी हो जाते हैं जिसमें वे हैरिटेज बैकग्राउंड में प्यार-मोहब्बत करते हुए दिखाए जाते हैं और फिर जिस समय शादी होती है, तब वह फिल्म दिखाते हैं, जिसमें दोनों हीरो-हीरोइन की तरह एक्ट कर रहे होते हैं। मैं लोदी गार्डन सैर के लिये जाता हूं। हर रोज 8 से 10 लड़के-लड़कियां प्री-वेडिंग शूट करते नजर आते हैं।
कुल मिलाकर विवाह जो एक बहुत ही पवित्र रस्म हुआ करती थी, उसको नाटकीय, बेहद खर्चीला और दिखावे वाला बना दिया गया। हालांकि शादी के कुछ रीति-रिवाजों में सकारात्मक बदलाव भी हुआ है। पहले सामान्य शादी का उत्सव भी तीन-चार दिन चलता था। अब ज्यादातर जगहों पर यह घटकर एक दिन रह गया है। इसके अलावा पहले से ज्यादा शादियां दिन में होने लगीं हैं, जिससे लाइटिंग और आतिशबाजी का खर्चा बचता है। सामूहिक विवाह और मंदिरों में शादी के प्रति भी लोगों की रूचि बढ़ी है। इससे भी शादियों के खर्चे में कमी आई है। सरकारें सामूहिक विवाह को बढ़ावा दे रही हैं। गुरुद्वारों की तरफ से भी पहलकदमी हुई है। उन्होंने लोगों से दिन में सादगी के साथ शादी करने को कहा है। आप भी शादी में झूठी शान दिखाने की बजाए इसके कुल बजट का एक हिस्सा समाज कल्याण पर खर्च करें तो आपका नाम होगा और समाज का भला होगा।
(नवभारत टाइम्स, 07.04.2018)