विजय गोयल
(लेखक केंद्रीय युवा मामले और खेल मंत्री हैं)
हाल ही में दिल्ली के मेहरौली के आर्कियोलॉजिकल पार्क जाना हुआ, तो वहां की हालत देखकर अफसोस हुआ। पार्क की मस्जिद के पास अतिक्रमण हो गया है। पर्यटन के लिहाज के महत्वपूर्ण दूसरी जगहों पर भी यही हालत है। वहां खंभों पर जो लिखा है, पढ़ने में नहीं आता। उस जगह का ऐतिहासिक महत्व वहां जाने वाले समझ ही नहीं पाते, तो फायदा क्या है? अगर किसी पर्यटक को किसी जगह का महत्व समझ में आएगा, तभी वह उस स्थान के प्रति संवेदनशील होगा, आदरभाव जागेगा। देश के ऐसे बहुत से ऐतिहासिक स्थान हैं, जो देख-रेख और सही नजरिए के अभाव में नशा करने वालों के अड्डों में बदल गए हैं। अगर उन्हें विकसित किया जाए, तो ऐसी जगहें बड़ी आमदनी और स्थानीय लोगों के लिए गौरवबोध का जरिया साबित हो सकती हैं।
भारत में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन हम दुनिया भर से उतने सैलानियों को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं, जितने होने चाहिए। देश के कई हिस्सों में आतंकी वारदात होने, महिलाओं के प्रति अपराध और जातीय हिंसा की वजह से भी पर्यटक चाहते हुए भी भारत का रुख नहीं कर पाते। फिर भी भारत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है, जो हर मौसम में सैलानियों को लुभाती है। हमारे यहां सभी मौसम आते हैं। मनोहारी पर्वतीय स्थल, नदियां हैं, खूबसूरत समुद्री तट हैं। जंगल हैं। देश की सांस्कृतिक विविधता विदेशी सैलानियों को खींचती है, तो खान-पान की अपार शैलियां हैं। ललित कलाओं के मामले में देश समृद्ध है। पौराणिक परंपराओं और वैज्ञानिक विकास के मामले में हम दुनिया में अग्रणी हैं। गावों की संस्कृति अब भी पूरी तरह विकसित है। भारतीय आयुर्वेदिक संस्कृति दुनिया की सिरमौर है। पूजा-पाठ की विभिन्न समाजों की अलग-अलग पद्धतियां हमें प्रकृति और इंसानों से प्यार करने का संदेश देती हैं।
हमारी सरकार ने पर्यटन की ओर विशेष ध्यान दिया है। कई कानून बनाकर विकास और परिवहन की सुविधाओं में आने वाले रोड़े दूर किए हैं। हम पर्यटन के प्रति नया नजरिया अपना कर न केवल विदेशी सैलानियों की संख्या बढ़ा सकते हैं, बल्कि अपने नागरिकों को भी देशाटन की अच्छी सुविधाएं दे सकते हैं। इससे न केवल अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके भी बढ़ेंगे। प्रधानमंत्री के स्वच्छता मिशन को भी बल मिलेगा। सही माइनों में ‘अतिथि देवो भव’ की हमारी मान्यता को ठोस आकार मिल सकेगा।
मुझे लगता है कि हमारी सामाजिक संपन्नता और समृद्धि को विदेशियों के लिए शोकेस करना चाहिए। पश्चिमी देशों में पारिवारिक मूल्य लड़खड़ा रहे हैं या टूट-फूट रहे हैं, इससे वहां के समाज में कुंठा बढ़ती जा रही है। हालांकि भारत में एकल परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन देश में आज भी संयुक्त परिवार प्रणाली जीवित है। एक ऐसी प्रणाली, जिससे परिवार और समाज सकारात्मक तौर पर एक-दूसरे के सुख-दुख से बंधे रहते हैं। हमें अपनी सामाजिक संतुष्टि की भावना को भी शोकेस करना चाहिए। आज भी हमारे गांवों के लोग बहुत से भौतिक साधनों के बिना पूरी तरह संतुष्ट जीवन बिता रहे हैं। जिस तरह हमने योग को पूरी दुनिया में शोकेस किया है, उसी तरह भारतीय जीवन पद्धति के दूसरे सकारात्मक मूल्यों के जरिए विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया जाना चाहिए। ऐसे गांव चिन्हित हों, जहां हैरिटेज टूरिज्म के साधन हों, संयुक्त परिवार चिन्हित हों, वहां सैलानियों को ले जाया जाए, तो यकीनन हम पर्यटन के प्रति नए नजरिये का विकास करेंगे।
हमें देश के ऐतिहासिक स्थलों को लोगों के लिए उदारता के साथ खोल देना चाहिए। सभी जानते हैं कि कोई चीज तब तक ही कारगर रहती है, जब तक कि उसे इस्तेमाल में लिया जाए। नई कार को अगर एक जगह पर खड़ी कर दें, तो कुछ महीने बाद ही वह बेकार हो जाएगी। इसी तरह किसी इमारत का इस्तेमाल नहीं होने की स्थिति में धीरे-धीरे वह खंडहर में जाएगी। आज देश में ऐसी बहुत सी इमारतें और हवेलियां हैं, जिनमें कोई नहीं रहता, फलस्वरूप वे जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गई हैं। बहुत सी बावड़ियां हैं, जो मरती जा रही हैं या मर चुकी हैं। ऐसे सभी मॉन्यूमेंट्स में सार्वजनिक गतिविधियां शुरू होनी चाहिए। क्यों नहीं हम बावड़ियों को स्विमिंग पूल में बदल सकते? क्यों नहीं दिल्ली के पुराने किले जैसी देश की सभी जगहों पर अच्छे रेस्तरां का विकास किया जा सकता? इससे सरकारी खजाने में भी बढ़ोतरी होगी और लोगों के मन में भी वहां जाने का आकर्षण बढ़ेगा।
मैं तो चाहता हूं कि दिल्ली के लालकिले में शादियों की इजाजत दी जानी चाहिए। ऐसी एक ईवेंट के धनवान लोग करोड़ों रुपए की फीस भरने को तैयार हो जाएंगे। इस तरह की ईवेंट प्रतिष्ठित कंपनियों के माध्यम से कराई जा सकती हैं। इसके लिए दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम और बारादरियों जैसी संरक्षित जगहों को छोड़कर, मैदानों का इस्तेमाल करने में क्या हर्ज है? खाली मैदान में मुगल-राजपूती या दूसरी शैलियों में शामियाने लगाए जाएं। फर्नीचर पर भी वही छाप हो। दूल्हे हाथी या घोड़े पर बैंड-बाजे और खास तौर पर सजे-धजे बारातियों के साथ लाल किले के प्रवेश द्वार से अंदर जाएं, तो समां देखने लायक होगा। देश में बहुत से धनवान हैं, जो इस तरह के वैन्यू को हाथों-हाथ लेंगे। क्योंकि ऐसी शादियों या दूसरे समारोहों में बड़े और प्रतिष्ठित लोग ही शामिल होंगे, लिहाजा किले की ऐतिहासिकता को कोई नुकसान पहुंचने की आशंका नहीं है। समारोह क्योंकि मैदानों में होंगे, तो इससे ऐतिहासिक जगहों को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। कभी दिल्ली के मेयर खास लोगों का सम्मान लाल किले में करते थे। अब क्यों ऐसा नहीं होता? लाल किले में सांस्कृतिक आयोजन अब क्यों नहीं होते, विदेश से आने वाली हस्तियों को किले का भ्रमण क्यों नहीं कराया जाता, अगर इमारतों की हालत खराब होने की दलील पर ऐसा नहीं होता, तो क्या बिना गतिविधियां चलाए हालत खराब नहीं हो रही है? क्यों नहीं लाल किले के चारों तरफ बनी खाई का विकास कर वहां बोटिंग कराई जाती?
आगरा में ताज महल देखने हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं। ऐसे और भी बहुत से पर्यटन स्थल हैं। दिल्ली से आगरा तक रेलवे लाइन के दोनों तरफ पर्यटन को बढ़ावा देने और राजस्व में वृद्धि करने के लिए सजावट की जा सकती है। ऐसे और रेल रूटों पर भी यह व्यवस्था की जा सकती है। होटलों के अलावा सैलानियों को ठहराने के लिए पूरे देश में घरों को चिन्हित किया जा सकता है। हमारी सरकार की कोशिशों का ही नतीजा है कि 2016 में विदेशी पर्यटकों की संख्या 10.7 प्रतिशत बढ़ी और 88.9 लाख सैलानी भारत आए। वर्ष 2015 में 80.3 लाख विदेशी भारत आए थे। पिछले वर्ष पर्यटन से विदेशी मुद्रा 15.1 प्रतिशत बढकर 155656 करोड़ रुपए रही। 2015 में विदेशी सैलानियों की वृद्धि दर में 4.5 का इजाफा हुआ। 2014 में 76.8 लाख विदेशी आए। यूएस डॉलर में पर्यटन से विदेशी मुद्रा आय वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2015 में 4.1 फीसदी की वृद्धि के साथ 21071 मिलियन यूएस डॉलर रही, जो 2016 में 9.8 फीसदी बढ़कर 23146 मिलियन यूएस डॉलर हो गई। घरेलू पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी है। उनकी संख्या 2014 में 1282.8 मिलियन थी, जो 2015 में 11.63 फीसदी बढ़कर 1432 मिलियन रही। देश के जीडीपी में पर्यटन का योगदान 2012-13 में बढ़कर 6.88 प्रतिशत रहा, तो इसी वर्ष रोजगार में योगदान बढ़कर 12.36 प्रतिशत हो गया। आगे के आंकड़ों की अभी गणना चल रही है। अगर हम देश की धरोहरों को खोलेंगे और जनता पर भरोसा करेंगे, तो इन आंकड़ों में अभूतपूर्व वृद्धि निश्चित है। दिल्ली मेट्रो की चमक-दमक लोगों पर भरोसे का ही नतीजा है।