कभी-कभी में मेरे दिल में ख्याल आता है कि आप होते तो ऐसा होता………
युगपुरुष वाजपेयी जी, मेरे लिए सबसे अहम थे और हमेशा रहेंगे। उनका हम सभी को छोड़कर चले जाने पर महसूस हो रहा जैसे एक युग का अंत हो गया है। मेरे लए वह पिता तुल्य थे, वह मुझे डांटते थे, तो बाद में समझाते और दोबारा पूरी ताकत से काम पर जुटने के लिए मैं उनके कार्यकाल में पीएमओ में मंत्री था। इस दौरान अक्सर उनके साथ यात्रा पर जाने का अवसर मिलता था। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मेरी हर छोटी बड़ी सभा से लेकर व्यक्तिगत कार्यक्रमों में भी वह अपनी व्यस्तता में से समय निकालकर पहुचते थे। शायद उनसे अपनेपन की वजह ही मैंने अधिकारपूर्वक उनकी कविताओं के संग्रह की पहली पुस्तक प्रकाशित कराई थी। नरसिम्हा राव सरकार के समय उनकी पुस्तक प्रकाशित हुई थी। वह हमेशा एक बात कहते थे कि उनके जीवन का मूल उद्देश्य है कि भारत को महान देश के रूप में देख सकें। उन्होंने अपनी इसी बात को संसद में उस समय भी कहा था, जब महज एक चोट के कारण सरकार भंग हो गई थी। उस समय में पीएम वाजपेयी जी ने कहा था कि वह खाली हाथ रहकर भी देश के उत्थान और उसे महान बनाने के लिए अंतिम सांस तक प्रयास करते रहेंगे। इसे संयोग कहा जाए या कुछ और कि वह मुकेश और लता द्वारा गाया गीत, कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है और एसडी बर्मन का ओ रे मांझी..को सबसे अधिक पसंद करते थे। और आज जबकि वह हमारे बीच से चले गए हैं तो लगता है,जैसे पसंदीदा गीतों की तर्ज पर ही सभी को छोड़कर दुनियासे कूच कर गए हैं और अब हम सभी के दिल में भी अब यह बात उभर रही है, ख्याल आता है कि, वह होते तो ऐसा होता…। वह इस बात पर भी बेहद खुश होते थे कि उन्होंने यूएन असंवेली में हिन्दी में भाषण दिया, जबकि उनसे पूर्ववहां भाषण देना भी स्वप्न सरीखा समझा जाता था। वाजपेयी जी कई बार आडवाणी जी की बातों पर नाराजगी भी जताते थे, लेकिन वह उनके सबसे खास दोस्त थे। आडवाणी जी के अलावा भैरव सिंह शेखावत, जसवंत सिंह और डा.मकुंद मोदी भी उनके करीबी मित्र रहे, जिनसे वह भाजपा सरकार के कार्यकाल में कई बार अहम विषयों पर भी चर्चा कर लेते थे। आडवाणी जी की रथ यात्रा से लेकर उप प्रधानमंत्री तक के सफर, में वह हमेशा साथ ही रहे। खाने-पीने और घूमने के वह काफी शौकीन भी थे, वह कहते भी थे कि जीवन के हर पल को पूरी गंभीरता से बिताना चाहिए।दिल्ली की परांठे वाली गली हो या फिर सागर और चुंगवा यहां जाने पर वह खाए बिना नहीं रह सकते थे।खाने में मछली, चाइनीज, खिचड़ी और मालपुआ होने पर वह खुद को रोक नहीं पाते थे। अक्सर छुट्टियां बिताने के लिए उन्हें या तो मनाली सबसे पसंद था या फिर वह अल्मोड़ा, माउंट आबू में अपना अवकाश गुजारना पसंद करते थे। सही कहूं तो वाजपेयी जी की सोच, कविताएं, दूरर्दिशता और राजनीतिक कौशल हमेशा सभी का मार्गदर्शन करेगा। एक तरफ तो अटलजी ने विपक्ष के पार्टी के प्रमुख के रूप में एक आदर्श विपक्ष की भूमिका निभाई वहीं दूसरी ओर उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को निर्णायक नेतृत्व भी उपलब्ध कराया।
नवोदया टाइम्स 17 अगस्त 2018