हिंदू प्रतीकों का मजाक उड़ाने की प्रवृत्ति विदेशों में ही नहीं देश में बढ़ रही है
कुछ दिन पहले यू-ट्यूब पर हाथ चलाते-चलाते मेरी नजर कपिल शर्मा के एक शो पर गई, जिसमें एक अन्य कलाकार यमराज बना हुआ था। इसमें कपिल यमराज की मूंछों को देखकर कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे तू किसी लड़की को खा कर आ रहा है और उसकी चोटी बाहर रह गई है। उसके बाद यमराज के सिर को देखकर कहते हैं कि यह सींगों वाला हेलमेट क्यों पहन रखा है? कुल मिलाकर यमराज का जितना उपहास उड़ाया जा सकता था, उड़ाया जा रहा था और सामने बैठे दर्शकों के साथ नवजोत सिंह सिद्धू और शत्रुघ्न सिन्हा हंस रहे थे। इस तरह से यमराज का मजाक उड़ाना मुझे बेहद खला। मेरे मन में सवाल आया कि किसी और धर्म के देवता या गुरु होते तो क्या इस तरह से उनका मजाक उड़ाया जा सकता था! यह हिंदू देवी-देवताओं की खिल्ली उड़ाने या उनकी गरिमा कम करने का पहला मामला नहीं है। कुछ साल पहले आई एक फिल्म 'पीके' में भी भगवान शिव को जिस तरह बाथरूम में और फिर सड़क और छतों पर दौड़ते चित्रित किया गया, उसे देखकर बड़ी निराशा हुई। वैज्ञानिक हैं मान्यताएं दुनिया जानती है कि हिंदू धार्मिक मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक आधार है। पीपल के पेड़ को काटना पाप समझा जाता है तो इसका कारण यह है कि पीपल का पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देता है। इसे धर्म से जोड़ा गया ताकि लोग पाप के डर से ही सही, प्राणवायु देने वाले इस पेड़ को न काटें। इसी तरह कहते हैं कि गंगा में नहाने से पाप धुल जाते हैं। वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि गंगाजल कभी खराब नहीं होता और इसके पानी में अति विशिष्ट गुण हैं। तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि लोग पवित्र गंगा को इस कदर गंदा बना देंगे और फिर उसी में डुबकी लगाकर खुद को पुण्यभागी भी समझेंगे। ऐसे ही हिंदू मंदिर बड़ी संख्या में पहाड़ों पर बनाए गए ताकि धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ लोग पर्यावरण और प्रकृति को भी जान सकें। मेरा गुस्सा इस बात को लेकर है कि लोग हिंदू आस्थाओं का मजाक क्यों उड़ा | रहे हैं। किसी और धर्म से जुड़े व्यक्तित्वों और प्रतीकों का मजाक उड़ाकर तो देखिए, आपकी | जान पर बन आएगी। भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी को अपने उपन्यास 'द सैटनिक वर्सेज' । के कारण कई देशों में मुसलमानों का विरोध झेलना पड़ा। उनको हत्या की धमकियां दी गईं। 1989 में ईरान के तत्कालीन सर्वोच्च | नेता अयातुल्ला खोमैनी ने उनके खिलाफ | मौत का फतवा तक जारी किया। जान बचाने | के लिए रुश्दी ने लगभग 10 साल भूमिगत होकर बिताए। बांग्लादेशी मूल की लेखिका तस्लीमा नसरीन को नारीवादी और इस्लामद्रोही लेखन के कारण बांग्लादेश से निर्वासित कर दिया गया। रेप केस में 20 साल की सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम पर सिखों के गुरु गोबिंद सिंह की तरह ड्रेस पहनने का आरोप लगा था। इससे सिखों की भावनाएं आहत हुईं और इसके खिलाफ काफी विरोध प्रदर्शन हुए। बाद में राम रहीम द्वारा अकाल तख्त से माफी मांगने पर मामला शांत हुआ, लेकिन इस वजह से पंजाब में कई दिनों तक सांप्रदायिक तनाव बना रहा था। आम आदमी पार्टी से जुड़े संगीतकार विशाल डडलानी ने एक बार एक जैन मुनि को लेकर विवादित टिप्पणी की तो जैन समाज सड़कों पर आ गया और डडलानी के साथ ही पार्टी आलाकमान को भी माफी मांगनी पड़ी। सोचने की बात है कि किसी भी धर्म का मखौल उड़ाने वाले व्यक्ति की भावना क्या होती है। जब भी हम किसी बड़े आदमी की आलोचना करते हैं तो लोगों को आनंद आता है। जिस काम को लोग खुद करने की हिम्मत नहीं करते उसे दूसरे को करते देखकर उन्हें खुशी होती है। ऐसे में केवल हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की हंसी उड़ाने की वजह क्या हो सकती है? इसी देश में रानी पद्मावती के घूमर नृत्य के दृश्य पर एक पूरी जाति खड़ी हो गई और जमकर उत्पात मचाया। लेकिन रोज सोशल मीडिया, टीवी और विभिन्न मंच पर हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का जो मजाक उड़ रहा है, उस पर हमने खतरनाक चुप्पी ओढ़ रखी है। बुरा भी लगे तो हम सोचते है कि इसका विरोध कोई और कर देगा। ठीक उसी शुतुरमुर्गी मुद्रा की तरह, जैसे जब सिर्फ हमारे घर की बिजली जाती है तो हम परेशान होते हैं, लेकिन पूरे मोहल्ले की बिजली जाती है तो निश्चिंत हो जाते हैं कि जो हमसे ज्यादा परेशान होगा, वह इसकी शिकायत करेगा। धर्मनिरपेक्षता का राग अलापने वाले भी हिंद आस्था पर हमले को न केवल चुपचाप देखते रहते हैं बल्कि इसमें रस लेते हैं? हिंदुओं में संगठन की कमी और धर्म शिक्षा का अभाव इसका मुख्य कारण है। कोई भी कंपनी या संस्था किसी अन्य धर्म के पवित्र चिह्नों को कपड़ों, जूतों पर दिखाने का साहस नहीं करती, क्योंकि उसे पता है कि इसका क्या परिणाम हो सकता है। – शालीनता से करें विरोध ऐसे मौके आने पर इसका कानूनी तरीके से विरोध किया जाना चाहिए। स्थानीय पुलिस के साथ संबंधित कंपनी को भी मेल, फोन या पत्र के माध्यम से शिकायत भेजनी चाहिए। भारतीय समाज की पहचान धार्मिक तौर पर निरपेक्ष और सहिष्णु समाज के तौर पर होती है तो ऐसा सभी धर्मों के धार्मिक विश्वासों, आस्थाओं, प्रतीकों और इष्टदेवों के साथ दिखना चाहिए। किसी भी धर्म की धार्मिक भावनाओं से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो संदेश यही जाएगा कि समाज विरोधी तत्वों को चक्काजाम, बलवा, हिंसा, आतंक से ही काबू में रखा जा सकता है। जाहिर है, यह संदेश भारत की संस्कति. सहिष्णता और वैश्विक छवि के लिए ठीक नहीं होगा।