Vijay Goel

हमने बचपन को मार दिया

विजय गोयल (लेखक बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं)   सुबह का सुहाना मंज़र अगर दिल से महसूस कर लिया जाए, तो पूरे दिन ताज़गी रहती

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What double standards!

Desperate situations often result in despertae moves. That is how I would term the attempt by some vested interests to rake up issue of Lord

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Vijay Goel’s favourite Atal Ji’s Poem

कदम मिलाकर चलना होगा   बाधाएँ आती हैं आएँ, घिरें प्रलय की घोर घटाएँ, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों

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